ब्लॉग के धुरंधरो को इस नई उपज का सलाम । मैं परेशान हुँ की आप धुरंधरो को क्या कह कर संबोधित करुँ ? जाहिर है ये मुझसे उम्र और दिमाग दोनों में बड़े है । अक्सर इन धुरंधरो को अपने से बडे उम्र और दिमाग वाले लोगों को बाबाओं की उपमा से नवाजते देखा, सुना और पढ़ा है । मैं असमंजस मे हुँ, और आशा करता हुँ कि आप मेरी मदद करें की आखिर आप जैसे दिग्गजो को मैं क्या कहु?
भईया बार-बार यही समझाते की बच्चु अगर मीडिया में रहना है तो कलम घसीट वरना खुद को घसीटाता हुआ पायेंगा । खैर उन्होंने कोई गलत बात तो कहीं नहीं थी और मैं उनसे क्या कहता की मैं कोई कलम का सिपाही थोड़े न हु जो हर वक्त्त कलम तानकर खड़ा रहु और अपने इस एके ४७ से अपने दुश्मनो को धाराशायी करता रहु! खैर खुद को छ्पवाने का शौक तो मुझे भी है ( जैसा की मीडिया के हर स्टुडेन्ट का होता है)। साथ ही यह भी की कभी अविनाश जी जैसे दिग्गज जनसत्ता के ब्लाग लिखी में इस ब्लाग की भी चर्चा करें । लेकिन फ़िलहाल तो यह मंसुबा सिर्फ़ एक सपना ही है। और सपना भी मुंगेरीलाल के हसीन सपनो की तरह । जनसत्ता की बात आई तो याद आया की अब यह भी अपवाद नहीं रहा। अब मीडिया की हकीकत तो आप सबो से छुपी नहीं है। आमतौर पर मैनें पाया है कि छात्र मीडिया को अंतिम विकल्प के रुप में लेते है। रही-सही कसर इसकी सच्चाई जानने के बाद पुरी हो जाती है। इस सिलसिले मे अक्सर ऐसे छात्र गलतफ़हमी का शिकार होते है। ऐसे मे यह किस ओर जायेगा और इसका स्तर क्या होगा इसका अनुमान कोई भी आसानी से लगा सकता है।
खैर छोडिये इन बातों को, अब आप भी सोच रहें होगें की बच्चा अभी-अभी पेट से निकला नहीं की लगा मीडिया की बातें हांकने। सही भी तो है अभी मात्र डेढ़ साल ही तो हुए है मीडिया का रस चखे हुए और आप सोच रहे होगें की अभी से अंगुर खट्टे लगने लगे! और ब्लाग की मनोहारी दुनिया में तो आज ही कदम रखा है। वैसे इस ब्लाग स्टेशन से तो कई बार गुजरना हुआ लेकिन उतरा कभी नहीं। लेकिन जब इस बार भूख कुछ ज्यादा ही सताने लगी तो सोचा क्यों न कुछ नास्ता कर लिया जाये। वैसे भी इस स्टेशन पर हर तरह की ठेली लगती है, किसी भी चीज की कमी नहीं है। और समानो की वैरायटी के अनुसार दुकानदारो की भी वैरायटी मौजूद है। हाँ ये अलग बात है कि मां स्टेशन (बाहर) का खाना खाने से मना करती आई है क्योंकि इससे पेट खराब होने का डर रहता है। अब मैं भी ठहरा नटखट शैतान, जो चीज के लिए मना किया जाता है वही चीज जानबुझकर करता हुं। वैसे भी इतनी सारी खाने की चीजें देखकर कब से मुह से लाड़ टपक रहा था। अब आखिर इस निशच्छ्ल मन को कब तक मसोस कर रखता। और भईया भी यही कहते है कि 'कर लो जो करना है...'। वैसे मुझमें और इस ब्लाग में अच्छी छ्नेगी क्योंकि दोनों ही अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार आज ही के दिन अस्तित्व मे आये। और ब्लाग की दुनिया का तो अपना ही मजा है। कोई उल्टी करके अपनी भडास निकालता है तो कोई ब्लाग को वाकई कबाडखाना ही बना बैठा है तो कोई रिजेक्ट माल को धड़ाधड़ पोस्ट कर रहा है (जिनका नाम नहीं ले सका उनसे क्षमा चाहुगा।)
लेकिन फ़िलहाल तो यह नई उपज अपने इस छोटे से सफ़र की शुरुआत भर कर रहा है उम्मीद है आप लोगों का मार्गदर्शन और प्रोत्साहन मिलता रहेगा - जय हिन्द, जय भारत।
11 Feb 2008
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